एक बेचैनी सी है दिल में
जैसे कुछ छूट रहा है
हर पल में अपनेको तुम्हे ढूंढता पाता हूँ
जैसे तुम कहीं खो सी गयी हो
हर पल में तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ
जो अब तक तुम्हें कभी कहा ना हो
हवा के झोके से फिर हकीकत में जगता हूँ
और खुद को समझाता हूँ की ये तो बस दूरी है
वो इस वक़्त ख्वाबों में डूबी है
फिर भी एक बात सताती है
की कहीं ये दूरी दिल की दूरी तो नहीं
कहीं ये दूरी के फासले मैं ख़तम न कर पाया तो
कहीं मैं तुम्हें अपने दिल की वो बात बता न पाया तो
कहीं मैं तुम तक फिर पहुंच ही न पाया तो
एक बेचैनी सी है दिल में